कॉलेज के बारे में
उन्नीसवीं सदी के अंत में कुशक गली मथुरा में अग्रवाल पाठशाला की स्थापना हुई, जिसकी स्थापना ने समाज में शिक्षा के प्रति जागृति पैदा की। जनपद में शिक्षा के क्षेत्र में सेवा की दृष्टि से अग्रवाल समाज के कतिपय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अग्रवाल शिक्षा मण्डल नामक संगठन बनाया। 20वीं सदी के प्रारम्भ में कानपुर निवासी लाला कामता प्रसाद जी सर्राफ की धर्मपत्नी श्रीमती चम्पा कुँवरि (जो संभवतः मथुरा की ही थीं), द्वारा इस हेतु दान स्वरूप प्रदत्त धन से कलेक्टर गंज के सामने टीले पर नजूल की जमीन लेकर, चम्पा अग्रवाल हाईस्कूल की स्थापना का विचार मूर्तरूप लेने लगा। गवर्नमेंट शिक्षा विभाग के तत्कालीन सर्वोच्च अधिकारी मि. ए.एच. मैकेन्जी द्वारा परिसर में आधार शिला रखी गई।
इस संस्था को 1926 से मान्यता मिली हुई है। संस्था परिसर में वर्तमानतः 8065 वर्गमीटर क्षेत्रफल के छतयुक्त भवन तथा लगभग 3385 वर्ग मीटर खुली भूमि है। संस्था परिसर के सड़क की ओर वाले भाग में बाहर की और 26 दुकानें हैं जिनमें प्राप्त किराये की धनराशि प्रबन्ध समिति संस्था पर ही व्यय करती है।
संस्था के अध्यापकों व छात्रों ने हमेशा सामाजिक जागरूकता व राष्ट्रभक्ति का परिचय दिया है, स्वतंत्रता आन्दोलन में संस्था परिवार के कुछ सदस्यों ने हिस्सा लिया। 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा थोपी गई आपातस्थिति के दौरान अध्यापकों से जनसंख्या नियंत्रण के सम्बन्ध में शालीनता के दायरे से बाहर जाकर जबरन कार्य के सरकारी आदेशों के विरोध में इस संस्था के तत्कालीन प्रधानाचार्य ने खुले विरोध का ऐलान कर दिया जिसका सभी शिक्षकों ने भी समर्थन किया था।
इस संस्था को समाचार जगत ने विश्व स्तर पर तानाशाही के खिलाफ ‘मथुरा के कन्हैया की ललकार’ के रूप में चित्रित/प्रचारित किया था। स्मरणीय है कि जिस समय पूरा देश विरोधी नेताओं के कारागार में डाल दिये जाने के कारण किंकर्तव्यविमूढ़ होकर रह गया था और किसी और से भी कोई विरोधी/निषेधात्मक आवाज उठाने की हिम्मत का परिचय नहीं दे रहा था, उस नाजुक समय में चम्पा अग्रवाल इण्टर कालेज के अध्यापकों ने अपने प्रधानाचार्य के नेतृत्व में सामूहिक गिरफ्तारी देने का साहस किया तथा लोकतंत्र रक्षक के रूप में अध्यापक के सामाजिक दायित्वों का पालन करते हुए जनता को जगाने का काम किया।